Thursday, April 02, 2009

सफर (by cuckoo, she should sing more)

घर जाते हुए रस्ते में देखा
एक सूखा पीपल के पत्ता यूँ पड़ा था जड़ के पास
शायद बिछुड़ने के ग़म में रुका था कुछ देर

एक गीले हवा का झोंका आया
पत्ते को उसने जैसे गहरी सोच से जगाया


वो ज़मीन उसने छोरी जिससे लिप्त था इतनी देर से
और उड़ा अम्बर की और, कभी गिरता, कभी टकराता बढ़ता गया,

चल तो रहा था मेरे साथ ही
कभी मेरे पाँव से टकराता , तो कभी कुछ सोच के दूर हो जाता,
नजाने कहाँ जाके रुकना था उसको
पर जब तलक मेरे साथ चला, मेरा सफर तन्हा नही कटा

p.s. cuckoo dwells at : www.whileiambeing.blogspot.com

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