Monday, April 06, 2009

युवक की उत्पत्ति

एक तितली
बेफिक्र, स्वच्छंद और सरल
हवा के संग बहती हुई
खिड़की से कमरे के
भीतर घुस आई
और गोल गोल घेरे में
आंखों के सामने
बालक के
मानो जिग्यासा से
मंडराने लगी

बालक के मन में
एक नवीन अनुभूति ने जन्म लिया
अपरिचित किंतु शक्तिशाली
सौंदर्य को शाशित
निरीह को अधीन
और अपनी प्रभुता स्थापित करने की
आत्म्कामिका की अनुभूति ने जन्म लिया

बालक ने लपक कर
धर लिया तितली को
और रंग बिरंगे उसके
पंखो को
दबा लिया उँगलियों से
आंखों में उसकी
डर और विवेश्ता
देख कर
उन्माद उसका बढ़ता ही गया

उत्तेजना की चरम सीमा पर
पहुँच कर
झटके में तितली के
पंखों को पृथक किया
उसके शरीर से
और कुछ क्षणों तक देखता रहा तड़पते हुए
कुछ ही देर पहले के
सजीव और सुंदर तितली को
मरते और मुरझाते

बालक निरर्थक
और शुन्य निगाहों
से अपने कृत्य को
अपने पुरुषत्व को
देर तक निहारता रहा
तितली मर चुकी थी
और हो चुकी थी
युवक की उत्पत्ति
बालक के मन में

Labels: ,

5 Comments:

Anonymous kanishka said...

very good description of loss of innocence.
you seem to be getting comfortable in hindi as well.

9:45 PM  
Blogger Preeti said...

desire to be powerful, to succeed, to grow bigger than the rest, to rule .. your poem is an analogy to so many things in life...

you should write more in hindi .. !!!

11:02 PM  
Blogger carpedious said...

hauntingly brilliant....

2:51 PM  
Blogger Stranger said...

Mast poem hai sir. Good point.

9:33 AM  
Anonymous srijith said...

thus spake kanishka; and that should have been the last word i suppose.
very enjoyable (the description, i mean)

10:42 PM  

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home

Creative Commons License
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-Noncommercial-Share Alike 3.0 Unported License.